Thursday, May 03, 2007

औजार की कुछ और टैस्टिंग

धन्य‌व‌ाद रवि जी और मैथिली जी .

ये समस्या विंडोज विस्टा की नहीं लगती वरन माइक्रोसौफ्ट ऑफिस 2007 की लगती है.

मैने इस औजार को विंडोज़ एक्स पी में इस्तेमाल किया . वहां भी आउटलुक 2007 और वर्ड 2007 में इसमें समस्या आई . विस्टा में यह कुछ लिख तो पा रहा था विंडोज़ एक्स पी में तो लिख भी नही पाया.

outlook_capture_xp.jpg

वर्ड में देखें

word_xp.jpg

फिर मैने इसे नोटपैड और वर्ड्पैड में इस्तेमाल किया तो दोनों जगह ठीक से चला यानि विस्टा में भी और एक्स पी में भी. तो समस्या ऑफिस की लगती है.

फ़ोनोटिक टूल में ये बरहा की तरह काम करता है . इंडिक आई ऎम ई की तरह नहीं .

जैसे इंडिक आई ऎम ई 'अं" की मात्रा के लिये ^ का उपयोग होता है और बरहा में shift+m का . नया औजार shift+m ही लेता है .

मैथिली जी ने कहा कि " य‌ह आप‌को ब‌स एक ब‌ार कैफेहिन्दी.क‌ाम विजिट क‌रने के लिये क‌ह‌त‌ा है. ब‌ाद में क‌भी भी न‌हीं. इसे फ्रीवेय‌र की श्रेणी में ही रखिये" . लेकिन ऎसा नहीं है मैथिली जी . य़े आप के प्रोग्राम फाईल या जहां भी आपने ये औजार रखा है वहां एक स्थायी एच टी एम एल फाईल डाल देता है (1) Activate करते समय ये आपको फिर से साईट की सैर कराता है (2) और जब भी आप इसे इस्तेमाल करते है तो ट्रे में आइकॉन बनाते समय भी कहता है visit..... (3) इतना ही नहीं जब आप इसकी सैटिंग में जाते है तो वहां आपको साइट का लिंक मिलता है (4) और सैटिंग पेज में किनारे पर भी क्लिक करने से ये आपको फिर से फ्री की सैर करवाता है (5). एक और साइट http://www.itbix.com/ का लिंक भी औजार में है (6). फिर भी यदि आप इसे ऎडवेयर ना कह फ्री-वेयर कहना चाहें तो ठीक है मेरे विचार से तो ये ऎडवेयर ही है.

कैफ़े हिन्दी टाइपिंग औजार -मेरी प्रतिक्रिया

आज रवि जी ने कैफ़े हिन्दी टाइपिंग औजार के बारे में बताया . आपको शायद ध्यान हो कुछ दिनों पहले ही मैथिली जी ने अपनी साइट कैफे-हिन्दी के बारे में बताया था . उनके पोस्ट पढ़कर तुरंत जिप फाइल को डाउनलोड किया . य़े एक utt नाम की ज़िप फाइल है जिसके अन्दर CafeHindi.Net नामक एक एम एस आई फाईल है .

मैं विन्डोज विस्टा अल्टीमेट का इस्तेमाल करता हूँ . जब मैने इसे स्थापित करने के लिये क्लिक किया तो पहली स्क्रीन पर ये काफी देर तक अटका रहा . मैने सोचा शायद ये विस्टा समर्थित नहीं होगा . लेकिन थोड़े देर में ये चल पड़ा . इसको स्थापित करने के बाद देखा तो पाया कि (बिना पूछे) कैफ़े हिन्दी टाइपिंग औजार के अलावा कैफ़े हिन्दी वैब साइट का लिंक भी आपके कंप्यूटर में स्थापित कर देता है.

अब इसको चलाया तो एक इसको Activate करने का बटन आया . Activate करने के बाद ये फिर कैफे इन्डिया की साइट में ले गया जहां इस औजार के साथ साथ पूरी की पूरी साइट भी थी.

इसको चालू करने के बाद पहले इसे आउटलुक 2007 में प्रयोग करने का प्रयास किया .

outlook_capture

(बढ़ा करने के लिये चित्र में चटका लगायें)

मैने "आज जब में कनाट प्लेस गया तो पाया कि देखो क्या होता है " तो जो आया वो ऊपर वाले चित्र की दूसरी लाईन जैसा था . पहली लाईन मेरे इंडिक आई ऎम ई के द्वारा लिखी गयी है .

इसी लाईन को जब माइक्रोसोफ्ट वर्ड में लिखा तो देखिये क्या आया. (बढ़ा करने के लिये चित्र में चटका लगायें)

word1.jpg

माइक्रोसोफ्ट वर्ड में जब दूसरी बार लिखा कि "टाइप करना मुश्किल है भाई" तो देखिये क्या हुआ . पहली लाइन कैफे ओजार की है . दूसरी लाईन मेरे इंडिक आई ऎम ई की. (बढ़ा करने के लिये चित्र में चटका लगायें)

word2.jpg

मेरे विचार से अभी इस औजार को थोड़ा ठीक करने की आवश्यकता है .

एक और विचार आया कि जब ये औजार खुद ही कैफ़े हिन्दी वैब साइट का लिंक भी आपके कंप्यूटर में स्थापित कर देता है और अपने मीनू में भी एक ऑप्शन देता है visit cahehindi.com तो क्या इसे फ्री वेयर कहना उचित है या फिर इसे ऎडवेयर (Adware) कहा जाय ??

Tuesday, May 01, 2007

कम्प्यूटर कर्मियों का कम काम

पिछ्ली पोस्ट पर कई मित्रों ने अपनी टिप्पणीयां दी . आप सभी का हार्दिक धन्यवाद . श्रीश जी ने काफी अच्छे सुझाव दिये . उन पर भी अमल करुंगा .मेरी कोशिश तो रहेगी कि सप्ताह में कम से कम एक पोस्ट तो अवश्य लिखुं लेकिन ऑफिस के काम और ढेर सारे चिट्ठों को पढने के बाद लिखने के लिये कुछ समय ही नहीं मिल पाता पर कोशिश जारी है.

कुछ दिनों पहले पंकज जी ने सवाल उठाया कि कंप्यूटर वालों को इतने सारे पैसे क्यों मिलते है जिसके बारे में राजीव जी ने भी विस्तार से बताया और फिर पंकज जी भी उससे सहमत दिखे.

मेरा कंप्यूटर के क्षेत्र में लंबा अनुभव रहा है मेरा भी यही मानना है कि ऎसी स्थिति कमोबेश मांग और आपूर्ति वाली है . ये बात नहीं है कि कंप्यूटर वाले कुछ ज्यादा काम करते है ( हाँलांकि ज्यादा काम करने का अर्थ यह नहीं कि ज्यादा पैसा भी मिलना चाहिये ) अभी कुछ दिनों पहले U.S. Bureaus of Census and Labor Statistics की एक रिपोर्ट आयी है जिसके अनुसार अमरीका में कंप्यूटर कर्मी बांकी क्षेत्रों में काम करने वालों से कम काम करते हैं. ये तथ्य चौकाने वाले हैं ,कम से कम मेरे लिये . क्योकि मुझे लगता था कि हम लोग (कंप्यूटर वाले) ज्यादा काम करते हैं क्योकि काम के बीच में नैट सर्फिंग , चैटिंग , मेलिंग अधिकतर कंप्यूटर वाले ही करते हैं . यहां काम का अर्थ ऑफिस में समय बिताने से ही लिया जाय क्योकि अमरीकन संस्था ने भी इसे ही मुख्य आधार माना था.

आप भी परिणामों की एक झलक देखिये. (सारे समय औसत साप्ताहिक समय हैं और घंटे और मिनट में हैं )

प्रबंध ( मैनेजमेंट) : 46:24
कानून ( लीगल) : 44:54
आर्किटैक्ट/इंजीनियरिंग : 43:30
स्वास्थ सेवा : 43:06
कला/डिजाइन/मीडिया/खेल/मनोरंजन : 42:54
कम्यूनिटी / सामजिक सेवा : 42:54
कंप्यूटर/गणित : 42:24
शिक्षा/ट्रेनिंग/पुस्तकालय : 41:18

कंप्यूटर वालों के साथ जो गणित वाले इस श्रेणी में जोड़े गये है उनकी संख्या इस श्रेणी में 5 % से ज्यादा नहीं है. तो ये आंकड़े बताते है कि कितना कम काम करते है कंप्यूटर कर्मी.

अब इसका पैसे से क्या संबंध है ये तो नहीं मालूम पर ये आंकड़े जरूर कुछ मिथ्कों को तोड़ते हैं.

Wednesday, April 18, 2007

मैं और हिन्दी लेखन .

रवि जी ने कुछ रैगिंग लेने के अंदाज में पूछा .... “चलिए हमें बताएं कि आप इस चिट्ठे पर हिन्दी में कैसे लिखते हैं, सरल तरीका क्या है और यदि आप लिनक्स में हिन्दी लिखने का कोई सरल तरीका बता सकते हैं तो बताएं ” . ये रैगिंग भी थी और मेरी क्षमताओं को जानने की कोशिश भी.

रवि जी भले ही मुझे ना जानते हों पर मैं उन्हें जानता हूँ विभिन्न कंप्यूटर पत्रिकाओं में छ्पते उनके लेखों से. अभी इसी महीने “लिनक्स फॉर यू” में भी उनका लेख छ्पा है . उनका लिनक्स के हिन्दी-करण में भी काफी योगदान रहा है. तो वो यदि पूछें लिनक्स और हिन्दी के बारे में थोड़ा आश्चर्य होता है. ये सवाल तो मैने आपसे पूछ्ना है रवि जी. वैसे उन्मुक्त जी भी बता सकते हैं. जहां तक मेरा सवाल है मैं बताता हूँ अपने बारे में ( ज्ञानदत्त पाण्डे जी भी यही जानना चाहते हैं ).

मेरा कंप्यूटर और हिन्दी से बहुत पुराना नाता है. मैं चिट्ठाजगत ( हिन्दी और अंग्रेजी दोनों ) से अरसे से जुड़ा हुआ हूँ लेकिन सिर्फ एक पाठक की हैसियत से. इसलिये लगभग सभी को इस माध्यम से जानता हूँ. जहां तक हिन्दी की बात है हिन्दी मेरी मातृभाषा है . कंप्यूटर पर हिन्दी की जरूरत मुझे पड़ी सन 1996 में . मैं एक मैनुफेक्चरिंग कंपनी में काम करता था वहां हम लोग मजदूरों के लिये ट्रेनिंग मैनुअल बनाते थे जो कि हिन्दी में होते थे . ये सब उन दिनों बाहर से टाइप करवाने पड़ते थे. इसमें एक तो समय बहुत लगता था और फिर एक बार बनने के बाद उनको बदलना बहुत मुश्किल होता था .तो हम चाहते थे कि इसको कंप्यूटर में ले के आना . उस समय माइक्रोसोफट वर्ड उतना पॉपुलर नहीं था . हम लोग ‘एमि प्रो’ और ‘फ्री लांस ग्राफिक्स’ इस्तेमाल में लाते थे . उस समय किसी स्थानीय कंपनी से हमने कुछ सोफ्टवेयर लिया जो कि ‘रैमिंगटन क़ी बोर्ड’ पर चलता था. इसको इस्तेमाल करने मे काफी समस्या आती थी. अप्रेल 1998 (शायद) में चिप’ पत्रिका का पहला अंक आया था ( ये ‘चिप’ के ‘चिप-इंडिया’ बनने और ‘डिजिट’ के आने से काफी पहले की बात थी ) उसमें भारत-भाषा के प्रोजेक्ट के बारे में जानकारी दी गयी थी और साथ में ‘शुशा’ फोंट भी थे . तब से ही में ‘शुशा’ फोंट इस्तेमाल करने लगा. बाद में संस्थान के लिये ‘अक्षर’ और ‘श्री-लिपि’ भी लिये जो आज भी कुछ विभागों में सफलता पूर्वक चल रहे हैं. जहां तक अंतरजाल (वैब) पर हिन्दी की बात है मैने अपनी पहली हिन्दी साइट 1998 में बनायी थी. उस समय वी.एस.एन.एल के डायल अप ऎकाउंट होते थे और वो सर्वर स्पेस देते थे आपको अपनी साइट होस्ट करने के लिये . उसी में अपनी साइट बनायी थी ‘शुशा फोंट’ इस्तेमाल करके जो केवल हमारे संस्थान के लोगों के लिये थी. मैने अपनी पर्सनल साइट 1999 में ‘एंजल फायर” में होस्ट की इसमें भी कुछ पेज हिन्दी के थे. फिर जियोसिटीज (geocities) में 2001 में अपनी साइट बनायी . उस समय जियोसिटीज (geocities) को याहू ने नहीं लिया था. उसी समय ई-ग्रुप्स में (जो कि अब याहू-ग्रुप है) अपना एक ग्रुप भी बनाया. मेरी साईट इसी ग्रुप की साईट थी. इसमें भी काफी पेज “शुशा’ में थे. लेकिन बाद में सदस्यों के कहने पर कुछ पेजों को ‘रोमनागरी’ में बदला ,क्योकि शुशा वाले पेजों को देखने के लिये फोंट डाउंलोड करना पड़ता था, और कुछ को पी.डी.एफ्. में. ये साइट आधे-अधूरे रूप में आज भी मौजूद है .

जहां तक लिनक्स का सवाल है लिनक्स का प्रयोग भी खूब किया लेकिन अधिकतर प्रयोग सर्वर पर ही किया डैक्सटौप पर नहीं . हम लोग ‘HP-Ux’ और ‘AIX’ पर काम करते थे तो ‘युनिक्स’ पर हाथ साफ था. सारे सर्वर युनिक्स पर ही थे. लिनक्स को जाना पी.सी.क़्यू. लिनक्स के माध्यम से और एक दो बार विंडोज पार्टीशन करने के चक्कर में अपने कीमती डाटा भी खो दिये . लिनक्स को डैस्क्टोप में केवल प्रयोग के लिये ही इस्तेमाल किया और लगभग सभी फ्लेवर पर काम किया . पी.सी.क़्यू. लिनक्स ,रैड हैट , सूसे , डैबियन , युबंटू और भी बहुत सारे . अपने संस्थान में लिनक्स को स्थापित किया . पूरा का पूरा मेल सिस्टम लिनक्स पर बदला . फायर-वाल के लिये पहले ‘चैक-पॉंईट’ और फिर ‘सूसे फायरवाल’ का प्रयोग किया , प्रोक्सी सर्वर के लिये ‘स्कविड’ का प्रयोग किया . ये सभी अभी भी मेरे पहले वाले संस्थान में सफलता पूर्वक चल रहे हैं .

जहां तक डैक्सटौप का सवाल है उसके लिये भी काफी प्रयास किया पर लिनक्स कभी भी मेरे पसंद का ओ.एस. नहीं बन पाया .वर्ड प्रोसेसिंग के लिये भी ‘मुक्त और मुफ्त’ विकल्प देखे. स्टार ऑफिस के व्यवसायिक होने से पहले उसे भी आजमाया और फिर ‘ओपन ऑफिस’ को भी . हाँलाकि मुझे तो ‘ओपन ऑफिस’ ठीक लगा पर मेरे संस्थान के लोगों के बीच नहीं चला . मुख्य कारण रही इसकी माइक्रोसौफ्ट वर्ड के साथ कम्पैटेबिलिटी . क्योकि अधिकतर लोग माइक्रोसौफ्ट वर्ड इस्तेमाल करते हैं और उनके द्वारा भेजी गयी सामग्री ओपन ऑफिस में कभी कभी नहीं खुलती.

जहां तक रही कम्प्यूटर पर मेरे हिन्दी लेखन की बात तो मैं माइक्रोसौफ्ट विस्टा और ऑफिस 2007 इस्तेमाल करता हूं . मैने विस्टा में 'हिन्दी भाषा पैक' और ऑफिस के लिये 'इंडिक आई.एम.ई.' लगा रखा है. कभी कभी बराहा भी इस्तेमाल कर लेता हूं. लिनक्स में यदि कभी हिन्दी का इस्तेमाल करना हो तो ऑनलाईन टूल इस्तेमाल कर लेता हूं. लिनक्स में आजकल फैडोरा और स्लेड (सुसे लिनक्स इंटरप्राइज डैस्कटौप 10 ) इस्तेमाल करता हूं.

इस चिट्ठे में मैं उन तकनीकी विषयों को छूना चाहता हूं जो कि एक संस्थान के लिये आवश्यक हैं और जिनके बारे में अभी भी हिन्दी चिट्ठा जगत में चर्चा नहीं होती जैसे ई.आर.पी, फायरवाल , नैटवर्किंग वगैरह वगैरह . हिन्दी कैसे लिखें बताने के लिये पंकज भाई का वीडियो है , सर्वज्ञ है , श्रीस श्रीश जी हैं और भी बहुत लोग हैं और फिर रवि जी तो हैं ही.

वैसे रवि जी आपका विंडोज विस्टा वाला लेख भी पढ़ा था उसमें आपने लिखा था कि विंडोज विस्टा में 3डी सपोर्ट है . मेरे हिसाब से ऎसा नहीं है . विंडोज विस्टा केवल एअरो इफेक्ट ही सपोर्ट करता है 3डी नहीं .ये तो अभी तक इनबिल्ट केवल लिनक्स में ही है.

शेष फिर.....

Tuesday, April 17, 2007

इस चिट्ठे का प्रयोजन..

नमस्कार पाठको !

इस चिट्ठे के माध्यम से मैं आप सब के सामने उन तकनीकी विषयों को रखना चाहता हूँ जो हमारे आम जिन्दगी को किसी ना किसी रूप में प्रभावित करते हैं या भविष्य में प्रभावित कर सकते हैं.

आप अपनी टिप्पणीयों के माध्यम से बता सकते हैं कि आप किन किन विषयों के बारे में जानना चाहते हैं .

तो प्रतीक्षा कीजिये अगली पोस्ट की..

कमल